December 25, 2024

भक्त और भगवान के बीच ‘‘दिव्य सेतु’’ हैं ‘पूर्ण सदगुरूदेव: भारती

देहरादून। ईश्वर सर्वत्र हैं, जड़-चेतन सब में समाए हुए हैं लेकिन दिखते कब हैं? जब मनुष्य का परम सौभाग्य उदित होता है। पहले तो मनुष्य जन्म का ही मिलना दुर्लभ है, उस पर एक ऐसे महापुरुष की प्राप्ति हो जाना जो श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ हों साथ ही पूर्णता को भी प्राप्त हांे। पूर्ण गुरू के सत्संग में आकर ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग दिखाया जाए और गुरु प्रदत्त सनातन पावन ‘ब्रह्मज्ञान’ मिल जाए। सदगुरू ईश्वर को ‘दिव्य दृष्टि’ के द्वारा मनुष्य के हृदय के भीतर ही दिखा देते हैं। तात्विक रूप से ईश्वर का दर्शन और प्राप्ति दोनों को गुरूदेव सहज़-सरल बना दिया करते हैं। यह अहम बात है कि जीवन में पूर्ण संत-सदगुरू का पदार्पण हो जाए। मनुष्य देह अति दुर्लभ इसीलिए कही गई क्योंकि इसे प्राप्त करने के लिए देवी-देवता तक लालायित रहा करते हैं।
देवी-देवता असीम पुण्यों के बल पर देवत्व प्राप्त कर स्वर्गिक सुखों को भोग रहे हैं, लेकिन! इन पुण्यों की समाप्ति पर फिर वे भी चौरासी के चक्रों में घिरेंगे ही घिरेंगे। वे चाहते हैं कि मनुष्यों की भांति वे भी धराधाम पर जन्म लंे, पूर्ण गुरू की शरणागत होकर पावन ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति करें, शाश्वत भक्ति करें और गुरू के मार्ग निर्देशन में परमात्मा की प्राप्ति करके अपना आवागमन समाप्त कर लें। यह विडम्बना की बात है कि मनुष्य को परमात्मा ने मानव देह के रूप में इतनी बड़ी सौगात प्रदान की और मानव सारा जीवन इधर-उधर ही भटकते रहकर अपना सम्पूर्ण जीवन यूं ही नष्ट कर दिया करता है। साध्वी जी ने बताया कि जिस प्रकार यदि एक बूंद सागर से विलग होकर अपना असतित्व सिद्ध करना चाहे तो यह नामुमकिन बात है क्योंकि सागर से अलग उसका कोई भी वजूद नहीं रह पाता। एैसे ही मानव भी अपने मूल परमात्मा से अलग होकर अपना असल असतित्व ही खो बैठता है। वृक्ष अपनी जड़ों से जुड़कर ही पुष्प-फल-छांव दे पाता है। जड़ विहीन कुछ भी सार्थक नहीं है। मनुष्य भी अपनी जड़ ईश्वर के साथ जुड़कर ही फल-फूल सकता है। यूं तो संसार में समस्त जीव, जीवन यापन कर ही लेते हैं। प्रसाद का वितरण कर साप्ताहिक कार्यक्रम को विराम दिया गया।

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